नीरू दीदी शरत चन्द की एक बहुत ही छोटी कहानी है लेकिन शरत चन्द के नारी पात्रो और उनके मन को समझना हो तो एक दिशासूचक की तरह है. शरत चन्द की कहानियो मे बार बार आने बाले प्रश्न कि क्या ज्यादा
महत्वपूर्ण है नारी के जीवन मै सतीत्व या नारीत्व ?
ढाका विश्वविद्यालय ने शरत को ड़ी. लिट की उपाधि लेने के लिए बुलाया तब अन्यो के अलावा बांगला के प्रोफ़ेसर मोहित लाल मजूमदार से उनकी मुलाक़ात हुई और वहा बंकिम से उनके बिरोध पर चर्चा हुई वही बहुत भारी मन से शरत ने नीरू दीदी नाम के चरित्र के बारे में कहा. नारियो के संबंध में हमारे समाज में जो धारणा संस्कार की तरह बद्धमूल है, वह कितना बड़ा झूठ है, इसे मैं जानता हूँ. हमारे समाज में महिलाओं के लिए कितना अविचार है, नित्य उनपर कितने अत्याचार किये जाते है, अगर उन सबकी साहित्य में पुनरावृत्ति हो तो मानवीय दृष्टिकोण से मानव के मूल्य को स्वीकार करने के संबंध में हताश होना पडेगा.
नीरू दीदी ब्राहमण की लड़की थी - बाल विधवा. अपने ३२ बर्ष के जीवन तक उनके चरित्र में किसी प्रकार का कलंक नहीं लगा था. सुशीला, परोपकारिणी, धर्मशीला और कर्मिष्ठा के रूप में पूरे गाव में उसकी ख्याति फ़ैली हुई थी. गाव में शायद ही कोई ऐसा घर था जिसके कभी ना कभी वो काम ना आई हो. लेकिन ३२ बर्ष की अवस्था में उस बाल विधवा का पैर फिसल गया या कहे कि गाव का पोस्ट मास्टर उन्हें कलंकित कर कायरो की तरह भाग गया. यह कोई अनहोनी घटना नहीं थी. गाव देहात में ऐसी घटना होती ही रहती हैं लेकिन जिस नीरू दीदी ने रोगियों की सेवा, दुखियों को सान्तवना और अभावग्रस्तों की सहायता में कोई क़सर नहीं छोडी उस नीरू दीदी की सारी सेवाओं, स्नेह और आदर सत्कार को निमिष मात्र में भूल गए. समाज ने उनका परित्याग कर दिया और उनसे बात करना भी बंद कर दिया.
लज्जा, अपमान और आत्म ग्लानि से कुछ दिन में ही नीरू दीदी मरणासन्न हो शैयाशायी हो गयी और समाज का कोई व्यक्ति उन्हें एक लोटा पानी तक देने नहीं आया. शरत को भी घर परिवार बालो ने हुक्म दे रखा था कि उनसे नहीं मिले लेकिन बालक शरत सबकी निगाह बचाकर उनकी यहाँ चला जाता था. वो उनको फल ले जाकर खिला आता और उनके हाथ पैर सहला देता लेकिन उस अवस्था में भी उन्होंने समाज के इस पैशाचिक व्यबहार की शिकायत नहीं की. दंड यही समाप्त नहीं हुआ और जब उनका निधन हुआ तब उनकी लाश छूने भी कोई नहीं आया. डोम के द्वारा उनकी लाश नदी किनारे जंगल में फिकवा दी गयी जहां सियार कुत्तो ने मिलकर उसे नोच नोच कर खाया.
ये सब कहानी कहते कहते शरत का गला भर आया और धीरे से कहा -
" मनुष्य ह्रदय में जो देवता है, उसकी हम इस तरह वेइज्जती करते हैं."
शरत ने अपने पूरे साहित्य में ये लड़ाई लड़ी है और किसी भी पतित के चरित्र चित्रण के समय इसीलिये उनके अन्दर बसे देवता की झलक पाने और उसे उजागर करने का कोई अवसर उन्होंने नहीं जाने दिया. शरत की ये कहानी या अनुभव पतित नारियो के प्रति भी उनकी सहृदयता के मूल में है.
" मनुष्य ह्रदय में जो देवता है, उसकी हम इस तरह वेइज्जती करते हैं."
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha hai...
bahut badiya series shuru ki hai, badhai
शरतचंद्र से बढ़कर नारी ह्रदय को और कौन जान सकता है...उनकी नारियां बहुत ही स्वाभिमानी होती हैं...और हमेशा समाज के बंधे दायरे में फिट नहीं होतीं....पर शरतचंद्र ने बहुत सम्मान दिया है अपने नारी चरित्र को...और कभी इन्हें देवी या दासी बनाने की कोशिश नहीं की. हमेशा एक सहज मानव समझा...और इसके लिए हम नारियों को हमेशा उनका ऋणी होना चाहिए...कोई नारी भी इतने अच्छे ह्रदय से दुसिर नीर ह्रदय को नहीं समझ सकती जितना शरतचंद्र समझते थे.....और ये सब शायद बचपन में मिले नीरू दीदी के चरित्र का असर था उनके लेखन पर
जवाब देंहटाएंचिट्ठे पर कहानीकार की कहानियों के बहाने सर्वोत्तम नारी चर्चा। एक अच्छा ब्लॉग पर इसे किसी दायरे में नहीं बांधना चाहिये था। यह मेरा अपना मत है। आपका मत अलग है। किसी और का मत और ही होगा। विभिन्न मतों का एकत्र होना बहुमत भी कहलाता है और बहुत तम भी लाता है। पर उस तम के बाद जीवन में उजाला आता है।
जवाब देंहटाएंशब्द पुष्टिकरण का बने रहना एक पुराने ब्लॉगर को नये ब्लॉगर के तौर पर प्रस्तुत करता है।
आपने टिप्पणी करने को कहा है तो मैं यही कहूँगी कि पहली बार कोई ढंग का विषय उठाया है आपने! :) :) :)
जवाब देंहटाएंstri paatr ke hindustaani sahity me sbse kreeb shrat hi hain.stri ki grima,hrday,mijaz or pida ko sharat ne shayd khud stri hoke jiya hai.aapko mera dher sa shukriya sharat ke panne ynha le aane ke liye
जवाब देंहटाएंharibhai sahi hai.sadhana
जवाब देंहटाएंडा. वीना शर्मा जी से मेल मे प्राप्त -
जवाब देंहटाएंaaj bhee saikado neeru dediyaa jeevit hai jo isee tarah til-til kar mar raheehai .kaash aaj bhee koe sharat unakee peedaa ko vyakt kar pata. ik nayaa adhyaay shuru karane ke liye badhaai
Dr.Beena Sharma
http://prayasagra.org/
http://prayasagra.blogspot.com/
शरतचंद्र की नारी अपनी स्वतंत्रता औरस्वाभिमान का अलग अस्तित्वा पूर्ण आकाश रचती है.इस ब्लॉग के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंसौ अच्छे काम करने के बाद भी समाज की नज़र में किसी का कोई एक गलत काम आ जाता है तो उसे ही ले के हाय-तौबा मचा दी जाती है...जिसने हमें पैदा किया...हम उसी का इस तरह निरादर करते हैं ...
जवाब देंहटाएंशरत चंद्र जी के बहाने हमारे समाज की कुरीतियों को उजागर करती आपकी पोस्ट प्रभावी लगी
हरि भाई!
जवाब देंहटाएंआप यहाँ बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। इस काम की बेहद आवश्यकता है। लेकिन पोस्ट का फोंट साइज बहुत बड़ा हो गया है। कुछ छोटा कर दें तो बेहतर रहेगा।
शरद चन्द्र जी ने सही मायने मे नारी को समझा जाना है नमन है उनकी कलम को आपका म्ये प्रयास बहुत अच्छा लगा धन्यवाद
जवाब देंहटाएंIt is really nice analysis, keep up the good work.
जवाब देंहटाएंbahut hi prashansneeya aapka prayas hai hari ji.badhai.
जवाब देंहटाएंशरद जी कहानी तो मुझे बेहद बेहद पसंद है ,रश्मि जी की बाते मन को छू गयी ,एकदम सही कही वो शरद जी बारे में ,अति सुन्दर .
जवाब देंहटाएंमेरे इस नये ब्लोग की पहली पोस्ट पर आप सबका बहुत प्यार मिला है
जवाब देंहटाएंविवेक रस्तोगी, रश्मि राजीवा जी, अविनाश वाचस्पति जी, रत्ना जी, निधी जी, डा. वीना शर्मा जी, सुरेश यादव, राजीव तनेजा, दिनेशराय द्विवेदी जी, निर्मला कपिला जी, बेनामी जी (सुनामी), Dr. कविता किरन जी, ज्योति सिंह जी आप सभी का बहुत बहुत आभार
इस ब्लोग पर इसी तरग अपना प्यार बनाये रखे.
bahut bahut rongte khade kr dene wala vratant hai. Mujhe neeru didi pr jitni suhani hai utni hi gussa hai bhartiya smaj ke prati...!
जवाब देंहटाएंएक निर्दोष किरदार नीरू दीदी और क्रूर ये समाज .....!
जवाब देंहटाएंमनुष्य ह्रदय में जो देवता है, उसकी हम इस तरह वेइज्जती करते हैं
जवाब देंहटाएंसटीक कथन
बी एस पाबला
बहुत सुन्दर!अच्छा विश्लेषण है!
जवाब देंहटाएंनारि = न+अरि
जवाब देंहटाएंका सही रूप शरत् चन्द्र जी के साहित्य में स्पष्ट परिलक्षित होता है!
आपका प्रयास सराहनीय है!